|| श्री राम चालीसा ||

|| दोहा ||
गणपति चरण सरोज गहि, चरणोदक धरि भाल ।
लिखौं विमल रामावली, सुमिरि अंजनीलाल॥
राम चरित वर्णन करौं, रामहिं हृदय मनाई ।
मदन कदन रत राखि सिर, मन कहँ ताप मिटाई ॥
|| चौपाई ||
राम रमापति रघुपति जै जै । महा लोकपति जगपति जै जै ||१||
राजित जनक दुलारी जै जै । महिनन्दिनी प्रभु प्यारी जै जै ||२||
रातिहुं दिवस राम धुन जाहीं । मगन रहत मन तन दुख नाहीं ||३||
राम सनेह जासु उर होई । महा भाग्यशाली नर सोई ||४||
राक्षस दल संहारी जै जै । महा पतित तनु तारी जै जै ||५||
राम नाम जो निशदिन गावत । मन वांछित फल निश्चय पावत ||६||
रामयुधसर जेहिं कर साजत । मन मनोज लखि कोटिहुं लाजत ||७||
राखहु लाज हमारी जै जै । महिमा अगम तुम्हारी जै जै ||८||
राजीव नयन मुनिन मन मोहै । मुकुट मनोहर सिर पर सोहै ||९||
राजित मृदुल गात शुचि आनन । मकराकृत कुण्डल दुहुँ कानन ||१०||
रामचन्द्र सर्वोत्तम जै जै । मर्यादा पुरुषोत्तम जै जै ||११||
राम नाम गुण अगन अनन्ता । मनन करत शारद श्रुति सन्ता ||१२||
राति दिवस ध्यावहु मन रामा । मन रंजन भंजन भव दामा ||१३||
राज भवन संग में नहीं जैहें । मन के ही मन में रहि जैहें ||१४||
रामहिं नाम अन्त सुख दैहें । मन गढ़न्त गप काम न ऐहें ||१५||
राम कहानी रामहिं सुनिहें । महिमा राम तबै मन गुनिहें ||१६||
रामहि महँ जो नित चित राखिहें । मधुकर सरिस मधुर रस चाखिहें ||१७||
राग रंग कहुँ कीर्तन ठानिहें । मम्ता त्यागि एक रस जानिहें ||१८||
राम कृपा तिन्हीं पर होईहें । मन वांछित फल अभिमत पैहें ||१९||
राक्षस दमन कियो जो क्षण में । महा बह्नि बनि विचर्यो वन में ||२०||
रावणादि हति गति दै दिन्हों । महिरावणहिं सियहित वध कीन्हों ||२१||
राम बाण सुत सुरसरिधारा । महापातकिहुँ गति दै डारा ||२२||
राम रमित जग अमित अनन्ता । महिमा कहि न सकहिं श्रुति सन्ता ||२३||
राम नाम जोई देत भुलाई । महा निशा सोइ लेत बुलाई ||२४||
राम बिना उर होत अंधेरा । मन सोही दुख सहत घनेरा ||२५||
रामहि आदि अनादि कहावत । महाव्रती शंकर गुण गावत ||२६||
राम नाम लोहि ब्रह्म अपारा । महिकर भार शेष सिर धारा ||२७||
राखि राम हिय शम्भु सुजाना । महा घोर विष किन्ह्यो पाना ||२८||
रामहि महि लखि लेख महेशु । महा पूज्य करि दियो गणेशु ||२९||
राम रमित रस घटित भक्त्ति घट । मन के भजतहिं खुलत प्रेम पट ||३०||
राजित राम जिनहिं उर अन्तर । महावीर सम भक्त्त निरन्तर ||३१||
रामहि लेवत एक सहारा । महासिन्धु कपि कीन्हेसि पारा ||३२||
राम नाम रसना रस शोभा । मर्दन काम क्रोध मद लोभा ||३३||
राम चरित भजि भयो सुज्ञाता । महादेव मुक्त्ति के दाता ||३४||
रामहि जपत मिटत भव शूला । राममंत्र यह मंगलमूला ||३५||
राम नाम जपि जो न सुधारा । मन पिशाच सो निपट गंवारा ||३६||
राम की महिमा कहँ लग गाऊँ । मति मलिन मन पार न पाऊँ ||३७||
रामावली उस लिखि चालीसा । मति अनुसार ध्यान गौरीसा ||३८||
रामहि सुन्दर रचि रस पागा । मठ दुर्वासा निकट प्रयागा ||३९||
रामभक्त्त यहि जो नित ध्यावहिं । मनवांछित फल निश्चय पावहिं ||४०||
|| दोहा ||
राम नाम नित भजहु मन, रातिहुँ दिन चित लाई ।
मम्ता मत्सर मलिनता, मनस्ताप मिटि जाई ॥
राम का तिथि बुध रोहिणी, रामावली किया भास ।
मान सहस्त्र भजु दृग समेत, मगसर सुन्दरदास ॥